वह एक छोटा सा ही रेस्तरां था
जहां की पाबदा मछली तुम्हें बहुत स्वादिष्ट लगी थी
तुमने और भी बातें की थीं जो अब याद नहीं
पर याद है कि हम खुशबाग से लौटे थे
सिराजुद्दौला और लुत्फुन्निसा की कब्रों पर से
और मैं सोच रहा था
कि सिराजुद्दौला की कब्र के पास चार दिन तक
भूखी प्यासी बैठी रहकर अपनी जान देने वाली
लुत्फुन्निसा के लिए तो
न पाबदा का कोई अर्थ बचा होगा,....
