संपूर्णता से वंचित व्यक्ति रिक्तता से ही पूर्ण होता है
अस्तित्व की आलोचना में क्यों व्यर्थ करे समय
जीवन के बढ़ते मकड़जाल में भी
वह पा लेता है हर व्यूह का तोड़
उपेक्षित अभिनंदन भी सहर्ष स्वीकार उसे
किसी सूखाग्रस्त पठार में खेत को जैसे
मेघ का दर्शन ही पर्याप्त
एक खंडित प्रतिमा को जैसे
नास्तिक का प्रणिपात
संशयपूर्ण वायु में वेग कम है
व्....
