स्वयं प्रकाश की लिखी कुछ कहानियों को पढ़ते हुए अक्सर यह महसूस किया जा सकता है कि उनकी कल्पित दुनिया के विरुद्ध जो छोटी-छोटी घटनाएँ बेतरतीब ढंग से इस दुनिया में घटित हो रही हैं उन घटनाओं में शामिल मनुष्य की अमानवीयता को थोड़ा-सा ठहरकर उसकी जड़ों को अच्छी तरह से समझने के बाद उसे वह उजागर करते हैं। जिसमें उनकी कल्पना-लोक की दुनिया प्रारंभिक हिन्दी कथा लेखन-परम्परा की तरह किसी &....
