प्रेमचंद ने जिस तरह साधारण में असाधारण खोज लेने वाली कथा-दृष्टि पायी थी, ठीक वैसे ही अमरकान्त, भीष्म साहनी और शेखर जोशी के रास्ते होते हुए स्वयं प्रकाश में भी यह सहज किन्तु श्रमसाध्य रचनाशक्ति पहुंची थी। उनकी कहानी बनने की प्रक्रिया बड़ी साफ और अनउलझी है। इसे आप उनकी ही भाषा में देखें- ‘‘कहानीकार के रूप में जो मुझे जंच जाता है उस पर मैं बगुले की तरह घात लगाए बैठा रहता ....
