मैं नीली हंसी नहीं हंसती
कहा था तुमने एक दिन/बस उसी दिन से
खोज रही हूं--- नीला समंदर
नीला बादल, नीला सूरज
नीला चांद, नीला दिल हां--- नीला दिल
जिसके चारों तरफ बना हो
तुम्हारा वायुमंडल सफेद आभा लिये नहीं
सफेदी निकाल दी ह....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।