कविता

  • बोल-बनाव

    चुप्पी प्रेम की सबसे प्रिय  शरणस्थली है। बोल-बनाव मनुहार का सिलसिला।

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  • भीतर के उजास में

    कुछ पुराने अनसुलझे पल भी लेते आना सचमुच  बड़ा मजा आता है यार  बहस में जब तुम जिद पर उतर आती हो

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  • दिया बुझा दिया है अभी मसल कर आहिस्ता

    दिया बुझा दिया है अभी मसल कर आहिस्ता डूबते धुएं में देखता हूं तुम्हारा पिघलता अक्स 

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  • हम एक जैसे ही हैं

    सामने वज्रपात करती हुई  वह आई और समा गई नदी में

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  • प्रार्थना और प्रेम के बीच औरतें

    प्रार्थना करती औरतें एकाग्र नहीं होती वे लौटती हैं बार-बार अपने संसार में जहां वे प्रेम करती हैं

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  • प्यार हो जाता हूं

    प्यार हो जाता हूं इतना आसान हूं कि प्यार हो जाता हूं इतना कठिन हूं

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  • पंचतत्व

    आकाश सी विस्तृत हो गयी कल्पनाएं पृथ्वी सा उर्वर हो गया मन सारा जल उतर आया आंखों में अग्नि दहक उठी कामना की

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  • मैं नीली हंसी नहीं हंसती

    शिराएं भी सहम जाती हैं लाल रंग देखकर कितना जज्ब किया है न  मैंने रंग को  बस नहीं मिली तो सिर्फ एक चीज जिसके तुम ख्वा

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  • दरवेश

    चोर दरवाजे चुपके से यहां  और वहीं कहीं किसी दरवाजे के पीछे  टेक लगाये ख़ड़ी रहती हूं देर तक चुपचाप 

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  • सत्ता परिवर्तन

    तुम्हारी बातों का ख़जाना है मेरे पास  तुम्हारी अनुपस्थिति में गुनगुनाते हुए गवाक्ष से आती ओढ़ लूंगी कार्तिक की कच्

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  • दूसरे सिरे पर

    कॉफी है टेबल है एक घर है  जिसमें ये दोनों हैं 

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