सामने वज्रपात करती हुई
वह आई और समा गई नदी में
मुहाने पर व्याल के फन की तरह गर्दन
और बादलों के फाहे की तरह
कुंतल नजर आ रहे थे
ऊपर से पानी बह रहा था
मुलाकात हर मोड़ पर होती रही
दरख्तों की छायाओं में
धीरे से आई एक दिन
औ....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।