बड़ी सहजता से
एक अटूट विश्वास
के साथ
सारे बंधन को उतार कर
सौंप कर अपना
सब कुछ......
अपनी नियति
अपना द्वंद
अपनी आशा
अपनी निराशा
अपनी व्यथा
अपना मान
अपना अभिमान
अपना भविष्य और अपन....
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।