ओ नववर्ष नववर्ष आना
यूं तो कुछ नहीं बदला
बरसों पहले सुना था भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता।
बड़ी सहजता से एक अटूट विश्वास
दुनिया की सबसे उम्रदराज़ कविता सिखाती है दुनियादारी को क़रीब से देखना
संतोष कुमार तिवारी
स्वाति मेलकानी
अमित धर्मसिंह
नंदा पांडेय
प्रकाश प्रियम
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।