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ओ नववर्ष
नववर्ष आना
रथ पर सवार होकर नहीं पैदल आना।
मेरे वस्त्र मैले हैं हाथ गंदे
रास्ते के कांटे जो बीने हैं
तुम्हारी आने की शी में।
हे नववर्ष पथ में बिछी पंखूरियां
और वंदनवार में टंके
फूल कुम्हलाने के पहले आना।
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हिन्दी साहित्य की पत्रिकाओं की भीड़ में अलग पहचान बनाने वाली 'पाखी' का प्रकाशन सितंबर, 2008 से नियमित जारी है।