साहित्य की दुनिया में ऐसे भी रचनाकार हैं जिनकी साहित्य साधना जन संघर्ष का हिस्सा होती हैं। वे आत्मप्रचार से दूर रहते हैं। रामेश्वर प्रशांत ऐसे ही कवि हैं। उनका निधन 6 जून को सुबह साढ़े दस बजे बेगूसराय, बिहार के गढ़हरा में हो गया। उनके जाने की कोई चर्चा नहीं हुई। कोई शोर भी नहीं। पता नहीं कि बरौनी व बेगूसराय जो उनकी कर्मभूमि रही है, उसे छोड़ कही शोकसभा की गयी या नहीं? प्रगति....
