एक नकाबपोश रौशनी का उपहार
देश चौकीदारों से भर गया,
लेकिन जागते रहो की आवाज
कहीं से सुनाई नहीं देती।
कभी पीपल के पत्तों के पीछे से
आधी रात का चांद झांकता था
पुरानी कचहरी के सूने हो गये गलियारों से गजर बजता
चौकीदार पहले पहर की नींद में आंखें मलते उठ जाते
तब अजनबी चेहरे बस्तियों में नहीं घुसते थे,
जागते रहो की आवाज खूंखार कुत्तों की तरह
उन्हे....
