प्रदीप बहराइची

 (1)
खून धुल गए बारिश में 
छींटे अब भी बाकी हैं। 
आग चिता की राख हो गई 
चीखें अब भी बाकी हैं।।

सपनों का मर जाना तय था 
अपना हो बेगाना तय था। 
परत जमीं जो उम्मीदों की 
इस तरह धुल जाना तय था। 
माना कि सब चले गए पर 
उनका आना बाकी है। 

गांवों के सूने हैं रस्ते 
जीवन देखा इतने सस्ते 
बच्चों की आंखें अब सूनी 

Subscribe Now

पाखी वीडियो


दि संडे पोस्ट

पूछताछ करें