बहुत-सी कहानियां ऐसी होती हैं जो आपको भीतर-ही-भीतर कहीं कुरेदती रहती हैं। कागज पर भी नहीं उतरतीं लेकिन एक कचोट मन पर लगातार बनाए रखती हैं। फिर किसी दिन खुद ही कागज पर उतरने के लिए तैयार हो जाती हैं। वह घटना जिसका जिक्र मैं आगे करने जा रहा हूं, तीस से भी पहले की है। तब मेरे बेटे की उम्र लगभग उतनी ही थी जितनी आज उसके बेटे की है। अपने बेटे को तो मैं उसके बचपन में ज्यादा समय नहीं द....
