समकालीन हिंदी कविता का यह सबल पक्ष है कि कवि की दृष्टि उस चिड़िया की दो आंखों जैसी है जिनसे अपने और बच्चों के लिए दाना-पानी टोह लेती है। यहां तक की घोंसले पर सरसराहट की आवाजें भी कानों से नहीं उन्हीं छोटी आंखों से सुन लेती है। यही कमाल हासिल है समकालिन हिंदी के उन थोड़े-से कवियों को जो समाज को बड़ी बारीक नजर से देखने और परखने के बाद कविता बुनते हैं। ठोक-पीट या छील-तराश कर यदि कव....
