संघमित्रा

संघमित्र की कविता

युद्ध के बाद

 एक सुनियोजित साजिश,
शांति के झंडे तले बोया गया विनाश का बीज

जहां कूटनीति की जुबान में घुला होता है बारूद,
और भाषणों के बीच दम तोड़ती हैंµ
गर्भवती स्त्रियां, स्कूल जाते बच्चे,
और सांझ ढलती उम्मीदें

टूटते हैं घरµ
न सिर्फ ईंट-पत्थर,
बल्कि स्मृतियां, रिश्ते, और मनुष्य की आत्मा

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