बड़की काकी पानी की लुटिया, सिंदूर और फूल लेकर बरामदे में ही खड़ी थी। नरेश भाई गोरखपुर से नई स्कॉर्पियो लेकर बस पहुंचने वाले थे। अब काकी का सब्र जवाब देने लगा था, ‘अरे स्वीटी---! अपने पापा को फोन तो लगा। देख कहां तक पहुंचे हैं।’
स्वीटी वैसे दादी की कोई बात नहीं मानती थी, लेकिन इस समय तत्काल उसकी अंगुलियां मोबाइल पर थिरकने लगीं। लेकिन सब बेकार---। मोबाइल पर जय हनुमान ज्ञान ग....
