डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी से मेरी तीसरी मुलाकात 1974 में किरोड़ीमल कॉलेज (केएमसी) में हुई। यहीं से वह सिलसिला शुरू हुआ जो अब तक जारी है और मेरे जीवन के लिए निर्णायक भी है। मैं किरोड़ीमल कॉलेज (केएमसी) में एम-ए- करने गया था। त्रिपाठीजी वहां पढ़ाते थे। उनसे परिचय हो चुका था। वे मेरे पिता बद्रीनाथ तिवारी के मित्र थे। दोनों बताते थे कि त्रिपाठीजी इलाहबाद वाले हमारे घर भी आए थे, लेकिन ....
