विश्वनाथ त्रिपाठी एक ऐसे आलोचक हैं जो बहुत अधिक आलोचना लिखने के बावजूद निर्विवादित रहे। इसका प्रमुख कारण उनकी परखी और निर्मल आलोचकीय दृष्टि रही है। लेखन की दृष्टि से उनका आलोचना कर्म बहुत विपुल और विविधतापूर्ण है। लिखने के लिए उन्होंने ‘हिंदी साहित्य का सरल इतिहास’ भी लिखा है, जिसका अपना अलग महत्व है। ‘हिंदी आलोचना’ में-आलोचना के विकास को जिस ईमानदारी से रेखा....
