पंकज शर्मा

विश्वनाथ त्रिपाठी: कथा आलोचना की सिद्धियां

अक्सर कहा जाता है कि हिंदी कहानी आलोचना का प्रतिमान विकसित नहीं हो पाया। इस तथ्य में दम भले ज्यादा-कम हो, लेकिन इसे लगभग स्वीकार्य लिया गया। फिर ऐसा भी नहीं है कि इसके लिए किसी ने जतन नहीं किया। कथा आलोचना की बात उठते ही खुसुर-फुसुर का थमा सिलसिला शोर में तब्दील हो जाता है। शोर में शरीक समझदार लोग कहते हैं कि उस पार (काव्य आलोचना को) जितनी व्यापक सफलता हासिल हुई, इस पार (कथा ....

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