साहित्य केवल शब्दों का जाल नहीं होता, वह समय की स्मृति और संवेदना का जीवंत दस्तावेज भी है। जोड़ी साहित्य का इतिहास लिखने वाले
विद्वानों ने इसे कभी आलोचना की गंभीरता, तो कभी दार्शनिक विमर्श की गहराई से प्रस्तुत किया। किंतु जब मैंने विश्वनाथ त्रिपाठी द्वारा लिखित ‘हिंदी साहित्य का सरल इतिहास’ पढ़ा, तब मुझे पहली बार लगा कि इतिहास केवल विद्वानों की बौद्धिक उपलब्धि ....
