डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी हिंदी आलोचना के जिस दौर में विकसित हुए वह ‘लोक’ और ‘शास्त्र’ के द्वंद्व से आक्रांत रहा है। एक ओर अपनी पूरी तेजस्विता के साथ आचार्य रामचंद्र शुक्ल की परंपरा में विकसित हुई आलोचना, जो युगीन मूल्यों और परिवेशगत अध्ययन को आधार बना रही थी, वह पूरे हिंदी परिदृश्य पर हावी थी और दूसरी और त्रिपाठी जी के गुरु आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनुप्....
