भरत प्रसाद

हिंदी आलोचना के  लोकवादी शिल्पकार

सृजन के कर्मक्षेत्र में प्रतिबद्ध, पक्षधर, जनवादी, समाजचेता, लोकवादी कहलाना आसान तो नहीं, परंतु दुर्लभ भी नहीं। किंतु आलोचना के मैदान में खुद को प्रतिबद्ध, जनचेता, लोकवादी सिद्ध कर पाना कठिन से जरा आगे है। कारण हैµव्यक्तित्व की विश्वसनीयता, वैचारिक अविचलता, कलमी साहसिकता और आत्महंता इंकार का औघड़पन। प्रायः कवि को औघड़ माना गया है, परंतु फर्क पैदा करने वाला आलोचक भी औ....

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