सामाजिक सरोकार साहित्य की रीढ़ है इसके बिना साहित्य खड़ा नहीं रह सकता। ‘आचार्य’ हजारी प्रसाद द्विवेदी’ के शब्दों में ‘मैं साहित्य को मनुष्य के दृष्टिकोण से देखने का पक्षपाती हूं, जो वाग्जाल उसे दुर्गति हीनता, और परमुखापेक्षिता से नहीं बचा सके, उसे पर दुखकातर और संवेदनशील न बना सके उसे साहित्य कहने में मुझे संकोच होता है।’1 अपने गुरु की इस उक्ति को अपनी रचनाओं मे....
