यश मालवीय

यश मालवीय की कविताएं

आज एक ग़ज़ल

उजले कपड़े, मन के काले देश के दुश्मन 
हिंदू मुस्लिम करने वाले देश के दुश्मन

दूर दूर तक देख न पाने की मजबूरी 
हिलते से आंखों के जाले देश के दुश्मन 

बंद पड़े दरवाजे, आखिर कैसे खोलें 
जहनों पर लटके से ताले देश के दुश्मन 

जहर भरा सा राग लिए अपने होंठों पर
बहुत बेसुरे, ये बेताले ....

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