ज्ञानप्रकाश विवेक

ज्ञान प्रकाश विवेक की ग़ज़लें

हयात जिंदगी

औक़ात अपने घर की बचाने के वास्ते 
मैं शहर जा रहा हूं कमाने के वास्ते

कुम्हार आप मिट्टी की मानिंद हो गया
मिट्टी का इक चिराग़ बनाने के वास्ते 

उसने उतार डाले थे दस्ताने हाथ के 
वो रुक गया था हाथ मिलाने के वास्ते 

कमरे में बार-बार चली आती है हवा
बूढ़ा-सा मेरा लैंप बुझाने के व....

Subscribe Now

पाखी वीडियो


दि संडे पोस्ट

पूछताछ करें