गूंज है तुम्हारे होने की
यह पतझड़ का सभारंभ है
या बसंत का पूर्वाभास
पत्तियां बदल रही हैं रंगत
उत्फुल्ल वेणी में टके जाने के लिए
आतुर है फूल
कमनीय केशों को छूकर विनम्र हो गई है हवा
बांस वन के सुरम्य झुरमुटों में आश्रय ले रहा है
वृहदाकार प्रकाश पुंज
नदी का प्रवाह गुनगुनाने लगा है
भैरवी का आलाप
निश्चिंत और निर्व....
