वे धरती पर महा सूखे के दिन थे। दूर-दूर तक फैले मरुस्थल में जल मृग-मरीचिका की तरह आभास देता था, पर मिलता कहीं नहीं था। अंतिम वृक्ष ने भी बड़ी पीड़ा के साथ जल के अभाव में धरती मां से अंतिम विदा ली। उसकी सारी सूखी लकड़ियां चूल्हे में जल गयीं। पशु-पक्षी भी धीरे-धीरे दिखने बंद हो गए।
टैंकर से जल आया था। दो बाल्टी पानी के लिए लड़ाई लड़ने के बाद एक गिलास पानी पीकर, जरा गला तर करके वह बैठ....
