साहित्य, सामाजिक मूल्यों का केवल ताना-बाना नहीं है, बल्कि कई तरह की अवधारणाओं के साथ प्रकृतिजन्य सहज मानवीय जीवन बोध का संगुफन है। प्रत्युत, मानवीय व्यवहार के सूक्ष्म मनोभाव, प्रकृतिजनित संवेग और उसके क्रियाकलाप साहित्य के अध्ययन का मूल क्षेत्र रहा है। साहित्य की सीमा असीम है, विज्ञान भी इसका एक उपादान है। विज्ञान की तरह साहित्य में सृजन और ध्वंस साथ-साथ नहीं चलते हैं....
