मैं कुछ बरस पहले इमरोज से मिलने गया...अमृता प्रीतम के जीवनसाथी। वह भेंट केवल एक साक्षात्कार नहीं थी, वह एक दर्शन था-प्रेम, समर्पण और स्वीकृति का दर्शन। उस बातचीत में जब मेरे सहयोगी प्रेम भारद्वाज ने उनसे पूछा था कि आपको कैसा लगता था जब अमृता आपके स्कूटर की पिछली सीट पर बैठते हुए आपकी पीठ पर साहिर लुधियानवी का नाम उकेरती थीं, तो इमरोज का उत्तर हमें सन्न कर गया था। उन्होंने क....
