समकालीन हिंदी कविता, नवगीत और आलोचना से साक्षात्कार कराती अजित कुमार राय की पुस्तक ‘नई सदी की हिंदी कविता का दृष्टि-बोध’ ध्यानाकर्षण करती है। यह शिकायत सी रही है कि प्रयोगवादी और नई कविता के बाद समकालीन काव्यधारा आलोचना की राह में उपेक्षित सी रही है। केवल काव्य ही नहीं, काव्यालोचन की दृष्टियां भी उस बीज शब्दावली को नहीं गढ़ पाई, जो किसी काव्य प्रवाह की विशेषताओं की व....
