रजनी गुप्त

अ-संगत

कार के बाहर पसरे अंधेरे को चीरती रोशनी के चंद कतरे देखते हुए दिमाग तेजी से चक्करघिन्नी की तरह घूमने लगा मीता का। तेज गति से चलती कार में बैठे-बैठे ऐसा लगा जैसे काले भूरे बादलों से भरे आसमान में ऊंची उड़ान भरते प्लेन को हवा के भयावह तेज झटके खाने पड़ रहे हों। ऐसे प्लेन में न उतर पाने की बेबसी और जंगली रास्तों पर चलती कार के बीच में न उतर पाने की विवशता बिल्कुल एक जैसी। जिसे जब....

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