सुनीता

रुक्मा की सांस रुक गई

‘दादी! देर रात तक जागने से आंखें खराब हो जाती हैं। अब आपकी उम्र हो गई है। आप जाकर सो जाइए, इधर हम देख लेंगे।’ दादी की नकल करती प्रथा कुर्सी हिलाते, नाखून साफ करते, अपनी धुन में खोई-खोई बोलती है। 
‘हां! त{ अब तू हमार{ दादी जिन बना{। आजकल के बच्चे भी न जरा-सा कद निकलते ही बड़ों का स्थान लेने लगते हैं।’ रुक्मा चिढ़कर मुख फेर लेती है।
मनुहार में ‘अरे, दादी---!’ कहकर प्रथा ....

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