यूं तो हिंदी ने एक से बढ़कर एक साहित्यकार दिए हैं, ऐसे साहित्यकार जिन्होंने हिंदी को अपने लेखन से समृद्ध किया लेकिन ऐसे साहित्यकार बहुत कम हिंदी में हैं जिन्होंने साहित्य लेखन से इतर राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर लिखा, तटस्थता से दूर रहे और इसके चलते न केवल सत्ता बल्कि साहित्यिक बिरादरी के भीतर भी खटकते रहे। ऐसों में पहला नाम है ‘हंस’ के संपादक रहे राजेंद्....
