नीरज नीर

आवारा भंवरा और कागजी  तासीर वाला फूल

प्रौढ़ उम्र में पहुंच चुके ऋतुराज को उसकी नई चाहत ने व्याकुल कर दिया था। सोते जागते उसकी आंखों में बस एक ही ख्वाब तैर रहा था। कहते हैं पचास पार वाला इश्क गुलाबी नहीं, 
रक्तवर्णी हो जाता है। सुकोमल, मधुर सपनों की जगह लालसा और हवस इश्क का गिरेबान पकड़कर अपने कब्जे में खींच लेते हैं। ऋतुराज ऐसे ही लालसा और हवस के दलदल में धंसता जा रहा था। 
ऋतुराज की रात जैसे-तैसे आंखों-आ....

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