अपूर्व

वह सुब्ह कभी तो आएगी

वह सुब्ह कभी तो आएगी
वह सुब्ह कभी तो आएगी
धरती की सुलगती छाती पर 
जब बूंद बरसकर आएगी 
जब अंबर झूम के नाचेगा
जब धरती नग्में गाएगी
वह सुब्ह कभी तो आएगी
 -साहिर लुधियानवी
1 फरवरी, 2025 की सुबह उन सभी के लिए भारी थी जो भारतीय लोकतंत्र को सिसकते हुए दम तोड़ता देख पाने की दृष्टि रखते हैं। ऐसे सभी यह भी भली भांति देख और समझ पा रहे हैं कि इस लोकतंत्र की ....

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