भारत संविधान के अनुसार एक धर्मनिरपेक्ष देश है। विविधता ही हमारी पहचान है। सांस्कृतिक विरासत पर केवल एक समुदाय का कॉपीराइट या एकाधिकार नहीं हो सकता। सभी धर्मों, सभी विचारधाराओं को फलने-फूलने पल्लवित होते रहने के लिए आवश्यक है कि लेखक कलम के सहारे कट्टरवाद के चेहरे को अनावृत्त करे। याद करे प्रेमचंद को जिन्होंने अपनी पत्रिका हंस के नवंबर 1931 के अंक में संपादकीय में लिखा ....
