सुपरिचित रचनाकार सुशांत सुप्रिय का सद्य प्रकाशित कथा संग्रह ‘दलदल’ ऐसे समय में आया है जब निरंतर कहा जा रहा है कहानी से कहानीपन और किस्सागोई शैली गायब होती जा रही है। संग्रह में बीस कहानियां हैं जिनमें ऐसी जबर्दस्त किस्सागोई है कि लगता है शीर्षक कहानी ‘दलदल’ का किस्सागो बूढ़ा, दक्षता से कहानी सुना रहा है और हम कहानी पढ़ नहीं रहे हैं वरन् सांस बांधकर सुन रहे हैं कि आ....
