जल को भारतीय चिंतन परम्परा में सृष्टि के कारण भूत तत्त्वों में स्वीकार किया गया है। भारतीय दर्शन के प्राचीन स्रोत ट्टग्वेद के सप्तम मंडल के 49 सूक्त के चार मंत्रें में जल तत्त्व के इसी तत्त्व की प्रशस्ति है, यथा-
समुद्रज्येष्ठा सलिलस्य मध्यात्पुनाना यन्त्यनिविशमानाः।
इन्द्रो या वज्री वृषभोररादता आपो देविरिह मामवन्तु।।1।।
या आपो दिव्या उत वा रववन्ति स्रनित....
