शंकरानंद

शंकरानंद की कविताएं

जिद

चीजें बांस की तरह नहीं होती
कि उन्हें झुका दिया जाए
कच्ची करची की तरह
मोड़ दिया जाए वहां से
जहां से मोड़ने की जरुरत है

चीजें जरा-से दबाव से टूट जाती हैं
बिखर जाता है कांच
तितर-बितर हो जाती है देह
कोई रंग नहीं टिकता
टिकता नहीं कोई रुप
मरोड़ने के बाद
तोड़ने के बाद

एक मनुष्य इसी तरह
बिखर जा....

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