अधुनातन सभ्यता और प्राचीनतम संस्कृति के मध्य अंतराल और सापेक्ष विवेचना के लिए सदा पर्याप्त संभावना रही है। कई बार अल्प ज्ञान के कारण दुरभिसंधि भी दृष्टिगोचर होती रही। विद्वानों ने ऊहापोह के निवारणार्थ शोध-ग्रंथ प्रकाशित करने का निरंतर प्रयास किया। किंतु विद्यार्थियों को व्याकरण और रस सिद्धांत को पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाने वाले शिक्षक विरले ही रहे। सौभाग्य से हमे....
