अपने अध्ययन के क्रम में अब तक मैंने जितनी स्त्री साहित्यकारों को पढ़ा, सुना और समझा उनमें से निर्मला जैन एक ऐसी साहित्यकार हैं जो स्वयं को स्त्री विमर्श / स्त्री लेखन / स्त्रीवाद के फ्रेम से बाहर देखना पसंद करती हैं। जब मैं उनकी कृतियों का अध्ययन अपने शोध कार्य के दौरान कर रही थी तब मेरी नजर उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक ‘संचयिता’ पर पड़ी, जिसे रामेश्वर राय ने संपादित किया ....
