समकालीन हिंदी आलोचना की परंपरा में निर्मला जैन ने उस समय अपनी आलोचना यात्र आरंभ की थी। जब साहित्य में रामविलास शर्मा और नामवर सिंह दो भिन्न केंद्र बन चुके थे और दोनों शिखर आलोचकों ने अपने-अपने अंदाज में आलोचना दृष्टि का प्रभाव रखते हुए एक स्पष्ट और विशिष्ट पहचान भी कायम कर ली थी। इन्हीं के साथ, किंतु इनके समानांतर अपनी दृष्टि का बिल्कुल अलग निर्माण करते हुए निर्मला जै....
