पंकज शर्मा

निर्मला जैन होना कोई हंसी-ठट्ठे का खेल नहीं

आधुनिक हिंदी आलोचना की परंपरा में निर्मला जैन एक ऐसा नाम हैं, जिनकी तुलना हिंदी के किसी अन्य आलोचक से नहीं की जा सकती है। आचार्य शुक्ल का नाम जब सामने आता है, तब आचार्य द्विवेदी बरबस याद आते हैं। दोनों आचार्यों में तुलना का आधार भी है और हिंदी आलोचना के विकास को जानने-समझने के लिए अनिवार्य प्रविधि भी। डॉ- नगेंद्र की बात चलती है, तब आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी का जिक्र होने ल....

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