राजेश जैन

निर्मला जैन: तीन शब्द-चित्र

गत सदी के छठे दशक से हिंदी साहित्य में सक्रिय हूं। सन् 84 में दिल्ली आने के बाद यह सक्रियता और भी घनी हो गई। कहना न होगा कि अपने आस-पास जो भी नामजद साहित्यकार थे, सभी में यथायोग्य रुचि रहती थीµउन्हें पढ़ना, उन्हें सुनना और उनसे मिलना ---मैं कोई भी अवसर नहीं छोड़ता था। इनमें मुख्यतः प्रख्यात कथाकार, कवि, नाटककार और व्यंग्यकार अधिक थे, आलोचक नहीं के बराबर। शायद इसलिए कि शुरू से ह....

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