किसी भी पुस्तक को खोलने के बाद मेरी दृष्टि सबसे पहले उसके समर्पण पृष्ठ पर जाती है जो अमूमन किताब का पांचवां पृष्ठ होता है। लेकिन इस पुस्तक का दूसरा पृष्ठ ही समर्पण पृष्ठ है और इस पर लिखा हैµ‘हिंदी एम-ए- (1984-86, दक्षिण परिसर) की उन पांच छात्रओं के नाम जिन्होंने ‘हरावल दस्ते’ की तरह इस नए विकल्प की चुनौती को साहसपूर्वक स्वीकार किया।’ दरअसल समर्पण पृष्ठ वह पृष्ठ होता ह....
