बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में जब हिंदी गद्य नए कुलाचे भर रहा था तब आलोचना के क्षेत्र में विद्वानों ने एक ऐसी जमीन तैयार की जिसमें बौद्धिकता और परिपक्वता का सम्मिश्रण मौजूद था। हिंदी आलोचना की विकास परंपरा यहीं से विधिवत अपना रूप धारण करती है जो कालांतर में नई ऊंचाइयों तक पहुंची। स्वातं=योत्तर हिंदी आलोचना की विविधता और नवाचार कई संदर्भों में विशिष्ट रहा क्योंकि इसन....
