प्रेमचंद ने कहा है कि ‘साहित्य जीवन की आलोचना है।’ इसलिए साहित्य की आलोचना ‘जीवन के पुनर्मूल्यांकन’ का प्रयास है। यह प्रक्रिया जीवन और साहित्य में अनवरत चलायमान है। साहित्य के सहारे जीवनानुभूतियों में हो रहे परिवर्तन का रेखांकन संभव बन पड़ता है। साहित्य की आलोचना उन परिवर्तनों को लेखबद्ध करता है। निर्मला जैन रचित पुस्तक ‘हिंदी आलोचना का दूसरा पाठ’ हिंदी स....
