‘झलकती है मिरी आंखों में बेदारी-सी कोई
दबी है जैसे खाकिस्तर में चिंगारी-सी कोई’
गुलाम मुर्तजा राही की यह शायरी अल्पना मिश्र के उपन्यास ‘अक्षि मंच पर सौ सौ बिंब’ की ‘नीली’ के लिए बिल्कुल सटीक बैठती है क्योंकि नीली ‘स्लीप पैरॉलिसिस’ नामक बीमारी से जूझ रही है। उसकी आंखें रंगहीन हैं लेकिन इन्हीं रंगहीन आंखों में दुनिया की रंगीन तस्वीर झलकती है। ‘नील....
