प्रभाकरन हेब्बार

पितृसत्तात्मकता से मुक्ति अधूरी लड़ाई का नाम नहीं ह

आपकी कविता की कुछ पंक्तियां हैं-‘मुक्ति की चाहत को/सपनों की दुनिया से/बाहर लाना होगा।/मुक्ति की चाहत को/बस चाहत ही बने रहने देना/बूढ़ा कर देगा।/मुक्ति की चाहत को/अदम्य लालसा ही नहीं/दुर्निवार जरूरत बनाना होगा।/उसे एक आदत में ढालना होगा।/कविता का लिबास उतारकर/उसे रोजमर्रे की जरूरत बनाना होगा।/और फिर उसके लिए/वैसा ही उद्यम करना होगा/जैसा कि हम ताउम्र करते हैं/अपनी रोजमर्....

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